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महात्मा ज्योतिबा फुले: सामाजिक न्याय के योद्धा

महात्मा ज्योतिबा फुले: सामाजिक न्याय के योद्धा

 

 

आज, 28 नवंबर, महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि है। 1890 में पुणे में 63 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ था। वे अपने पूरे जीवन में सामाजिक न्याय, समानता और शिक्षा के लिए समर्पित रहे। उन्होंने शोषित वर्गों के उत्थान और जाति-आधारित भेदभाव को मिटाने के लिए अथक प्रयास किए। उनकी सोच और कार्य आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करते हैं।

समानता और न्याय के लिए संघर्ष

1827 में एक माली परिवार में जन्मे ज्योतिबा ने बचपन से ही जातिगत भेदभाव को महसूस किया। एक ब्राह्मण विवाह में निम्न जाति के लोगों के प्रति हुए अपमान ने उनके मन में बदलाव की चिंगारी जलाई। इस घटना ने उन्हें सामाजिक अन्याय के खिलाफ जीवन भर लड़ने की प्रेरणा दी।


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महिलाओं की शिक्षा के प्रबल समर्थक

ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं और पिछड़े वर्गों की शिक्षा को बढ़ावा दिया। 1848 में पुणे में पहला बालिका विद्यालय स्थापित कर उन्होंने समाज की रूढ़ियों को चुनौती दी। सावित्रीबाई भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं। दोनों ने विधवाओं और अनाथों के लिए भी आश्रय गृह खोले।

सत्यशोधक समाज की स्थापना

1873 में ज्योतिबा फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य जाति भेदभाव और धार्मिक पाखंड को खत्म करना था। सत्यशोधक समाज के अंतर्गत बिना ब्राह्मणों की भागीदारी के विवाह होते थे, जो समाज में समानता और स्वतंत्रता का संदेश देते थे।

किसानों और आर्थिक सुधारों के पक्षधर

ज्योतिबा फुले ने किसानों की समस्याओं पर भी ध्यान दिया। उन्होंने उच्च कर और शोषण के खिलाफ आवाज उठाई और सिंचाई परियोजनाओं की वकालत की। उनका उद्देश्य किसानों को बेहतर जीवन जीने के साधन प्रदान करना था।

जाति व्यवस्था और ब्रिटिश शासन के आलोचक

अपनी प्रसिद्ध पुस्तक गुलामगिरी में, ज्योतिबा फुले ने भारत में जातिगत शोषण की तुलना अमेरिका में दासता से की। उन्होंने जाति व्यवस्था और ब्रिटिश शासन दोनों की आलोचना की। हालांकि उन्होंने कानून की सुरक्षा को सकारात्मक माना, फिर भी वे शिक्षा और आर्थिक सुधारों की मांग करते रहे।

अमर विरासत

ज्योतिबा फुले के कार्यों ने डॉ. बी. आर. अंबेडकर जैसे समाज सुधारकों को प्रेरित किया। उन्होंने दलित शब्द का प्रयोग किया, जो आज भी सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष में महत्वपूर्ण है। उनकी स्मृति में पुणे में महात्मा फुले संग्रहालय जैसे संस्थान स्थापित हैं। उनकी रचनाएँ और विचार आज भी समाज को समानता और शिक्षा के महत्व का संदेश देते हैं।

 

महात्मा ज्योतिबा फुले की पुण्यतिथि पर हम उन्हें याद करते हैं, जिन्होंने जाति और लिंग आधारित भेदभाव को मिटाने का सपना देखा। उनकी विरासत हमें न्याय, समानता और मानवता के लिए प्रेरित करती है। आज हम उनके विचारों को याद करते हुए उनके आदर्शों को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।

 

 

 

 

अब तक बस इतना ही।

 

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